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संस्कृत का महात्म्य

जयतु संस्कृतम् 



संस्कृत भाषा के संबंध में बहुत कुछ भ्रांतियाँ लोगों के मन में रहा करती हैं । जैसे संस्कृत भाषा कठिन भाषा है, संस्कृत भाषा सीखने के लिए रूप रटने पड़ते हैं, संस्कृत भाषा तो पुरानी भाषा है , संस्कृत भाषा सीखने से कोई व्यवसाय प्राप्ति , धन प्राप्ति नहीं होती है आदि.....

परंतु जब संस्कृत भाषा के गुणों को हम जान लेंगे तब हम निश्चित ही संस्कृत से प्यार करने लग जाएंगे । जैसे – करेले का नाम सुनते ही सभी मुँह बिगाड़ लेते हैं और करेले को कडुआ कह कर दूर कर देते हैं , परंतु जैसे ही करेले के गुणों को जान लेते हैं तो सभी करेले कि सब्जी बनाकर , करेले का रस निकाल कर या फिर कच्चा करेला भी खाने तक को तैयार हो जाते हैं।

आइए हम संस्कृत के गुणों को जानें

अँग्रेजी भाषा में Cloud शब्द बादल के लिए प्रयुक्त होता है। cloud के समानार्थी शब्द अँग्रेजी भाषा में नहीं मिलता है। परंतु संस्कृत भाषा में यह व्यवस्था है

जल के समानार्थी – नीर , अम्बु , वारि , तोय , पय:, सलिल, उदक आदि हैं

जल के समानर्थी शब्दों के पीछे आप “द” लगाते चले जाइए और आप “बादल” के समानार्थी बना लेंगे जैसे – नीरद , अम्बुद , वारिद , तोयद ,

क्योंकि “द” का अर्थ है देना , देने वाला बादल हमें पानी देते हैं अतः पानी के संस्कृत शब्दों के पीछे “द” लगाईए और बादल के समानार्थी बनाइये।

जल के समानर्थी शब्दों के पीछे आप “ज” लगाते चले जाइए और आप “कमल ” के समानार्थी बना लेंगे जैसे – नीरज , अम्बुज , वारिज , तोयज ,

क्योंकि “ज” का अर्थ है पैदा होना कमल पानी में पैदा होता है अतः पानी के संस्कृत शब्दों के पीछे “ज” लगाईए और कमल के समानार्थी बनाइये।

जल के समानर्थी शब्दों के पीछे आप “धि” या "निधि:" लगाते चले जाइए और आप “सागर” के समानार्थी बना लेंगे जैसे – अम्बुधि , वारिधि , जलधि ,पयोधि ,उदधि , नीरनिधि, तोयनिधि आदि

क्योंकि “धि” का अर्थ है धारण करना समुद्र जल को धारण करता है और निधि अर्थात खजाना है अतः पानी के संस्कृत शब्दों के पीछे “धि” लगाईए और समुद्र के समानार्थी बनाइये।

संस्कृत से प्यार करिए , संस्कारवान बनिए , संस्कृत की रक्षा करिए वंदेमातरम् वंदेसंस्कृतम् ।


सन 1800 के आस पास यूरोप में सर्वाधिक चर्चित विषय था-

मेघावी अंग्रेज अब ब्राह्मण होते जा रहे है।


ब्राह्मण(संस्कृत विद्वान)


ऐसे कुछ अंग्रेज थे जिन्होंने हमारे शास्त्रों, हमारे ज्ञान और देवभाषा को आत्मसात किया और अपने देश ले गए, उसे सिखा,सिखाया और अपनाया-


कालिदास से उनको प्रेरणा मिली, कणाद से परमाणु का सिद्धांत, महाभारत से बड़ा कोई काव्य नहीं,

ना वेद से पुराने ग्रन्थ...

ना गीता से बड़ा कोई नीति,रीति,राजनीति और प्रबंधन का शास्त्र है..


ऐसे कुछ यूरोपियन्स की सूची जो भारतीय प्राच्य विद्या के विशेषज्ञ माने गए--


1⃣दुपरोन( Anquetil Duperron) ये फ्रांस के थे, इन्होंने दाराशिकोह द्वारा फ़ारसी में अनूदित उपनिषदों का लैटिन "औपनिखत(Oupnekhat) नामक अनुवाद किया।


2⃣जोहान फ़िकटे और पॉल दूसान ने वेदांत को सबसे बड़ा सच माना।


3⃣1875 में सर चार्ल्स विलकिन्स ने गीता का इंग्लिश अनुवाद किया।


विलियम जोन्स पेशे से जज थे 1784 में इन्होंने एशियाटिक सोसाइटी बनाई,अभिज्ञानशाकुन्तलम् का अनुवाद और ऋतुसंहार का संपादन किया,1786 में कहा कि-


™संस्कृत परम अद्भुत भाषा है। यह यूनानी से अधिक पूर्ण तथा लातिनी से अधिक सम्पन्न है।


जोन्स ने ही सर्वप्रथम यह कहा था कि-


™गॉथिक और केल्टिक दोनों परिवार की भाषाओं का उद्गम स्तोत्र संस्कृत है।


जोन्स फ्रांज बाप,मेक्समूलर और ग्रीम के आदर्श रहे है, ये तीनों संस्कृत व भारतीय संस्कृति के प्रमुख यूरोपियन जानकार माने जाते है।


🇮🇳संस्कृत के संपर्क से पूर्व यरोपियनों को फोनेटिक्स तथा उच्चारण प्रक्रिया का ज्ञान नहीं था, निरुक्त और अष्टाध्यायी के अध्ययन के बाद यूरोपियन विद्वानों ने इन विषयों पर शोध तथा लिखना प्रारम्भ किया।


4⃣1805 में कोलब्रुक ने वेदों का प्रामाणिक विवरण दिया दर्शन,व्याकरण,ज्योतिष और धर्म शास्त्र पर शोध किया।


5⃣यूजीन बनार्फ़ ये मेक्समूलर के गुरु थे।


6⃣मेक्समूलर ने 30 वर्षों तक सायण भाष्य पर शोध कर वेद भाष्य लिखा।


7⃣गेटे ने शाकुन्तलम् की प्रशंसा में कविता लिखी।


8⃣शीलर ने मेघदूत को आधार बना "मेरिया स्टुअर्ट" नामक कविता लिखी।


9⃣विलियम वर्ड्सवर्थ की कविता "ओड ऑन इन्टीमेशन्स ऑफ़ इमोर्टिलिटी" आत्मा के पुनर्जन्म सिद्धान्त पर आधारित है।


🔟 शैली की कविता एडोनायज( Adonai's) उपनिषदों पर आधारित है।


1⃣1⃣अमरीकी कवि एमसर्न ने "ब्रह्म" तथा जे.जी. व्हिटियर ने "सोम" नामक कविता लिखी है।


1⃣2⃣ आयरलैंड के कवि जार्ज रसेल ने (Over Soul, Krishna,The veils of maya,Om और Indian Song) जैसी शुद्ध भारतीय भाव की कविताये लिखी है।


1⃣3⃣ डब्लू.बी.येट्स ने भी शुद्ध भारतीय पृष्ठभूमि पर आधारित कवितायेँ लिखी है- Anushay and Vijay,The Indian upon God और The Indian to his love.


1⃣4⃣ स्टुअर्ट बेल्क़ि ने "त्रिमूर्ति" नामक कविता लिखी।


जब सम्पूर्ण पाश्चात्य ज्ञान,विज्ञान और साहित्य का आधार भारत और संस्कृत है तो भारत में संस्कृत को ये सम्मान क्यों नहीं...?


ये आंकड़े हमें ये बताने के लिए काफी है की भारतवर्ष और सनातन धर्म इतना गौरवशाली क्यों है...?


🚩हमें हमारे देश,सभ्यता,संस्कृति,संस्कृत और सनातन धर्म पर गर्व करना चाहिए, इसका संरक्षण,पोषण और विकास करना चाहिए।

जिस से भारत का विकास हो,वापस भारत अपने वैभव,गौरव को प्राप्त करे तथा विश्व का नेतृत्व करें।।


जयतु भारतम्🇮🇳

जयतु संस्कृतम्🚩


पाइथागोरस प्रमेय " या " बोधायन प्रमेय " कल्पसूत्र ग्रंथों के अनेक अध्यायों में एक अध्याय " शुल्ब सूत्रों " का होता है। " वेदी " नापने की रस्सी को " रज्जू अथवा शुल्ब " कहते हैं। इस प्रकार " ज्यामिति " को " शुल्ब या रज्जू गणित " भी कहा जाता था। अत: " ज्यामिति " का विषय " शुल्ब सूत्रों " के अन्तर्गत आता था।

भिन्न आकारों की वेदी‌ बनाते समय ऋषि लोग मानक सूत्रों (रस्सी) का उपयोग करते थे । ऐसी प्रक्रिया में रेखागणित तथा बीजगणित का आविष्कार हुआ।

शुल्बसूत्र का एक खण्ड बौधायन शुल्ब सूत्र है। बौधायन शुल्ब सूत्र में ऋषि बौधायन ने गणित ज्यामिति सम्बन्धी कई सूत्र दिए | उनमें " बोधायन ऋषि " का " बोधायन प्रमेय " निम्न है -

बोधायन " ने उक्त प्रसिद्ध प्रमेय के अतिरिक्त कुछ और प्रमेय भी दिए हैं-

>>> किसी आयत का कर्ण आयत का समद्विभाजन करता है ,

>>> आयत के दो कर्ण एक दूसरे का समद्विभाजन करते हैं,

>>> समचतुर्भुज के कर्ण एक दूसरे को समकोण पर विभाजित करते हैं आदि।

" बोधायन " और " आपस्तम्ब " दोनों ने ही किसी वर्ग के कर्ण और उसकी भुजा का अनुपात बताया है, जो एकदम सही है।

" शुल्ब-सूत्र " में

किसी त्रिकोण के क्षेत्रफल के बराबर क्षेत्रफल का वर्ग बनाना,

वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर का वृत्त बनाना,

वर्ग के दोगुने, तीन गुने या एक तिहाई क्षेत्रफल के समान क्षेत्रफल का वृत्त बनाना आदि विधियां बताई गई हैं।

निम्नलिखित शुल्ब सूत्र इस समय उपलब्ध हैं:

०१ ) आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र

०२ ) बौधायन शुल्ब सूत्र

०३ ) मानव शुल्ब सूत्र

०४ ) कात्यायन शुल्ब सूत्र

०५ ) मैत्रायणीय शुल्ब सूत्र ( मानव शुल्ब सूत्र से कुछ सीमा तक समानता है)

०६ ) वाराह (पाण्डुलिपि रूप में)

०७ ) वधुल (पाण्डुलिपि रूप में) हिरण्यकेशिन (आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र से मिलता-जुलता)

भिन्न आकारों की वेदी‌ बनाते समय ऋषि लोग मानक सूत्रों (रस्सी) का उपयोग करते थे । ऐसी प्रक्रिया में रेखागणित तथा बीजगणित का आविष्कार हुआ।

---- भास्कराचार्य की " लीलावती " में यह बताया गया है कि किसी वृत्त में बने समचतुर्भुज, पंचभुज, षड्भुज, अष्टभुज आदि की एक भुजा उस वृत्त के व्यास के एक निश्चित अनुपात में होती है।

---- आर्यभट्ट ने त्रिभुज का क्षेत्रफल निकालने का सूत्र भी दिया है। यह सूत्र इस प्रकार है-

त्रिभुजस्य फलशरीरं समदल कोटी भुजार्धासंवर्ग: ।

पाई ( ) का मान- आज से १५०० वर्ष पूर्व आर्यभट्ट ने का मान निकाला था।

किसी वृत्त के व्यास तथा उसकी परिधि के (घेरे के) प्रमाण को आजकल पाई कहा जाता है। पहले

इसके लिए माप १० (दस का वर्ग मूल) ऐसा अंदाजा लगाया गया। एक संख्या को उसी से गुणा करने पर आने वाले गुणनफल की प्रथम संख्या वर्गमूल बनती है।

जैसे- २ x २ = ४ ; अत: २ ही ४ का वर्ग मूल है।

लेकिन १० का सही मूल्य बताना यद्यपि कठिन है, पर हिसाब की दृष्टि से अति निकट का मूल्य

जान लेना जरूरी था।

इसे आर्यभट्ट ऐसे कहते हैं-

चतुरधिकम् शतमष्टगुणम् द्वाषष्ठिस्तथा सहस्राणाम् अयुतद्वयनिष्कम् भस्यासन्नो वृत्तपरिणाह:॥ (आर्य भट्टीय-१०)

अर्थात् एक वृत्त का व्यास यदि २०००० हो, तो उसकी परिधि ६२२३२ होगी।

परिधि - ६२८३२, व्यास - २००००

आर्यभट्ट इस मान को एकदम शुद्ध नहीं परन्तु आसन्न यानी निकट है, ऐसा कहते हैं। इससे

ज्ञात होता है कि वे सत्य के कितने आग्रही थे।

अकबर के दरबार में मंत्री अबुल फजल ने अपने समय की घटनाओं को ‘आईने अकबरी‘ में लिखा है। वे लिखते हैं कि " यूनानियों " को " हिन्दुओं " द्वारा पता लगाये गए " वृत्त के व्यास " तथा " उसकी परिधि " के मध्य सम्बंध के रहस्य की जानकारी नहीं थी।

इस बारे में ठोस परिज्ञान प्राप्त करने वाले हिन्दू ही थे। आर्यभट्ट को ही पाई का मूल्य बताने वाला प्रथम व्यक्ति बताया ग़या।। जयतु संस्कृतम् । जयतु भारतम् ।।

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