संस्कृत वाक्य अभ्यास
Sanskrit sentence study
सरोवरे सिंहः जलं पिबति।
= सरोवर में शेर पानी पीता है।
सिंहः लपलप कृत्वा जलं पिबति।
= शेर लपलप करके पानी पीता है।
सिंहः जिह्वया जलं पिबति।
= शेर जीभ से पानी पीता है।
जिह्वां मुखात् बहिः निष्कासयति।
= जीभ को मुँह से बाहर निकालता है।
जिह्वायां जलं गृह्णाति।
= जीभ में पानी लेता है।
यदा जिह्वा मुखस्य अन्तः गच्छति तदा जलमपि मुखस्य अन्तः गच्छति।
= जब जीभ मुँह के अंदर जाती है तब पानी भी मुँह के अंदर जाता है।
जलपानसमये सिंहः अत्र तत्र पश्यति।
= पानी पीते समय शेर यहाँ वहाँ देखता है।
सिंहेन सह तस्य शावकाः अपि सन्ति।
= शेर के साथ उसके बच्चे भी हैं।
सिंहिनी अपि जलम् पातुम् आगच्छति।
= शेरनी भी पानी पीने आती है।
जलं पीत्वा ते वनं प्रति गच्छन्ति।
= पानी पीकर वे वन को जाते हैं।
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कथं गच्छानि ?
= कैसे जाऊँ ?
यानं तु सः नीतवान्।
= वाहन तो वह ले गया।
पदभ्यां गच्छामि।
= पैदल जाता हूँ।
न...न...मम पार्श्वे भारः अपि अस्ति।
= नहीं ...नहीं ... मेरे पास भार भी है।
कथं नेष्यामि ?
= कैसे ले जाऊँगा ?
प्रतिवेशी अपि गृहे नास्ति।
= पड़ोसी भी घर में नहीं है।
अस्तु, मुख्य मार्गं गच्छामि।
= ठीक है, मेन रोड पर जाता हूँ।
किमपि हस्तं दर्शयामि।
= किसी को भी हाथ दिखाता हूँ।
कदाचित् कोsपि तिष्ठेत् ।
= शायद कोई रुक जाए।
कदाचित् कोsपि नयेत् ।
= शायद कोई ले चले।
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संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
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पाठ : (८) द्वितीया विभक्तिः (५) + अनुस्वार संधिः
(गत्यर्थक, ज्ञानार्थक, भक्षणार्थक, शब्दकर्मार्थक एवं अकर्मक धातुओं के अण्यन्तावस्था में जो कर्त्ता है वह धातुओं की ण्यन्तावस्था में कर्म संज्ञक होता है, अतः उससे द्वितीया विभक्ति होती है।)
भक्षणार्र्थक (अद् + खाद् धातु को छोड़ कर)
बालः दुग्धं पिबति = बालक दूध पी रहा है।
धात्री बालं दुग्धं पाययते = धायी बालक को दूध पिला रही है।
रोगी गुलिकां निगलति = रोगी गोली निगल रहा है।
परिचारिका रोगिणं गुलिकां निगालयति = नर्स रोगी को गोली निगलवा रही है।
माणविका आम्रं चूषति = बच्ची आम चूस रही है।
माणविकाम् आम्रं चोषयति = बच्ची से आम चुसवा रहा है।
कानीनः कुलपीम् अवलेक्ष्यति = कुंवारी का बच्चा कुलफी चाटेगा।
कानीनं कन्या कुलपीम् अवलेहिष्यति = कन्या कानीन को कुलफी चटवाएगी।
प्रपितामही फाणितं जमेत् = परदादी राब खाए।
प्रपौत्री प्रपितामहीं फाणितं जमयेत् = पड़पोती परदादी को राब खिलाए।
महिषः घासम् अघसत् = भैंसे ने घास खाई।
महिषं घासम् अजीघसत् = भैंसे को घास खिलवाई।
प्रपितामहः कौष्माण्डम् अभुनक् = परदादा ने पेठा खाया।
प्रपौत्रः प्रपितामहं कौष्माण्डम् अभोजयत् = पड़पोते ने परदादा को पेठा खिलाया।
प्रमातामही रसगोलम् अश्नातु = परनानी रसगुल्ला खाए।
दौहित्री प्रमातामहीं रसगोलम् आशयतु = धेवती (पुत्री की पुत्री) परनानी को रसगुल्ला खिलाए।
प्रमातामहः हैमीं अभक्षिष्ट = परनाना ने बर्फी खाई।
नप्त्री प्रमातामहं हैमीम् अभिभक्षत = धेवती ने परनाना को बर्फी खिलाई।
संस्कृताः जनाः संस्कृतं विजानन्ति = शिष्ट लोग संस्कृत जानते हैं।
संस्कृतज्ञः संस्कृतान् जनान् संस्कृतं विज्ञापयति = संस्कृतज्ञ शिष्ट लोगों को संस्कृत जना रहा है।
अहं समाचारम् अश्रौषम् = मैंने समाचार सुने।
मां समाचारम् अशुश्रवत् = मुझे समाचार सुनाए।
त्वमद्य कां वार्तां उपालभत = तूने आज किस बात को जाना ?
सः त्वामद्य कां वार्तां उपालम्भयत ? = उसने आज तुझे कौन सी बात बताई ?
अतुलः न्यायदर्शनम् अध्येष्यते = अतुल न्यायदर्शन पढ़ेगा।
अहम् अतुलं न्यायदर्शनम् अध्यापयिष्ये = मैं अतुल को न्यायदर्शन पढ़ाऊँगी / पढ़ाऊँगा।
सर्वे गीतां पठेयुः = सब को गीता पढ़नी चाहिए।
विपश्चित् सर्वान् गीतां पाठयेयुः = विद्वान् को सभी को गीता पढ़ानी चाहिए।
वादी सत्यं वदतु = वादी सत्य बोले।
वादिनं सत्यं वादयतु = वादी से सत्य बुलवाए।
जल्पी जल्पति = बकवादी बकवास कर रहा है।
जल्पिनं जल्पयति = बकवादी से बकवास करवा रहा है।
मूर्खः नष्टं विलपति = मूर्ख नष्ट हुई वस्तु के लिए शोक कर रहा है।
महामूर्खः मूर्खं नष्टं विलापयति = महामूर्ख मूर्ख से नष्ट हुई वस्तु पर शोक कराता है।
भाषिता भाषणम् अभाषिष्यते = वक्ता भाषण देगा।
भाषितारं भाषणं अभाषयिष्यते = प्रवक्ता से भाषण दिलवाएगा।
छात्रः पाठम् अपाठीत् = छात्र ने पाठ पढ़ा।
छात्रं पाठम् अपीपठम् = मैंने छात्र से पाठ पढ़वाया।
अकर्मक धातुएं
श्रोतारः तकन्ति = श्रोता खूब हंस रहे हैं। (तकः हंस हंस के लोट-पोट हो जाना।)
परिहासी श्रोतॄन् ताकयति = मजाकिया श्रोताओं को हंसा रहा है।
सर्वे प्रत्यहं हसेयुः = सभी प्रतिदिन हसें।
हास्यप्रशिक्षकः सर्वान् प्रतिदिनं हासयेयुः = हास्यप्रशिक्षक सभी को प्रतिदिन हंसाए।
सुखिनः कखिष्यन्ति = सुखी लोग हंसेंगे।
ईश्वरः सुखिनः काखयिष्यति = ईश्वर सुखी लोगों को हंसाएगा।
पापी रोदितु = पापी रोवे = पापी रोए।
रौद्रः पापिनं रोदयतु = रुद्रस्वरूप ईश्वर पापी को रुलाए।
दुःखिणो जनाः अपि अघाघिषुः = दुःखी लोग भी हंसे।
सुखदो दुःखिणो जनानपि अजीघघत् = सुख देनेवाले ईश्वर ने दुःखी लोगों को भी हंसाया।
को हसति ? = कौन हंसता है ?
कः कं हासयति ? = सुखस्वरूप ईश्वर किसे हंसाता है ?
निर्मलो हसति = निर्मल व्यक्ति हंसता है।
कः निर्मलं हासयति = सुखस्वरूप ईश्वर निर्मल व्यक्ति को हंसाता है।
प्राणिनः प्राणन्ति = प्राणी जी रहे हैं।
प्राणाः प्राणिनः प्राणयन्ति = प्राण प्राणियों को जिला रहे हैं।
सविता उदेति अस्तमेति च = सूर्य उदय एवं अस्त होता है।
कः सवितारम् उदयति अस्तमयति च ? = कौन सूर्य को उदित एवं अस्त कर रहा है ?
पुत्रः अजागः = पुत्र जागा।
पिता पुत्रम् अजागरयत् = पिता ने पुत्र को जगाया।
वृद्धः अपप्तत् = बूढ़ा गिर गया।
दुष्टः वृद्धम् अपीपतत् = दुष्ट ने बूढ़े को गिराया।
सुरभिः प्रियते = गाय प्रसन्न हो रही है।
सौरभेयी सुरभिं प्राययति = बछिया गाय को प्रसन्न कर रही है।
(निम्नलिखित शब्दों के योग में भी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है- अन्तरा, अन्तरेण, उभयतः, अभितः, परितः, सर्वतः, समया, निकषा, हा, प्रति, धिक्, उपर्युपरि, अध्यधि, अधोऽधः, विना)
ईश्वरं जीवम् अन्तरा अज्ञानगता दूरी वर्तते = ईश्वर और जीव के बीच में अज्ञानगत दूरी है।
द्युलोकं पृथ्वीलोकमन्तरा अन्तरिक्षलोको विद्यते = द्युलोक और पृथ्वी के बीच में अन्तरिक्षलोक है।
विद्यामन्तरेण कोऽपि विद्वान् कथं स्यात् ? = विद्या के बिना कोई भी विद्वान् कैसे बन सकता है ?
मातरमन्तरेण शिशोः निर्माणं कथं स्यात् ? = मां के बिना बच्चे का निर्माण कैसे हो सकता है ?
निर्मातारं विना जगतः निर्माणं कथं स्यात् ? = निर्माता के बिना संसार का निर्माण कैसे होवे ?
स्रष्टारं विना सृष्टिः न स्यात् = स्रष्टा के बिना सृष्टि नहीं हो सकती।
भारतीं विना न कदाचित् भाति भारतम् = संस्कृत के बिना भारत कभी सुशोभित नहीं हो सकता है।
दीपम् उभयतः शलभाः सन्ति = दीपक के दोनों ओर पतंगे हैं।
दीपावलीम् उभयतः पतङ्गाः पतन्ति = दीपमाला के दोनों ओर पतंगे गिर रहे हैं।
चम्पापुष्पम् अभितः चञ्चरिकौ स्तः = चम्पापुष्प के दोनों ओर भौंरे हैं।
इन्दीवरं सर्वतः इन्दिन्दिराः विराजन्ते = नीलकमल के चारों ओर भौंरे दिखाई दे रहे हैं।
रजनीगन्धां सर्वतः द्विरेफाः दृश्यन्ते = रातरानी के चारों ओर भौंरे दिखाई दे रहे हैं।
मालतीं परितः मधुलिहः मधुरं गुञ्जन्ति = चमेली के चारों ओर भौंरे मधुर गुजारव कर रहे हैं।
जपापुष्पं परितः पुष्पलोलुपाः लोलुप्यन्ते = गुड़हल के फूल के चारों ओर भौंरे लार टपका रहे हैं।
गन्धपुष्पं परितः भृङ्गाः भ्रमन्ति = गेंदे के फूल के चारों ओर भौंरे उड़ रहे हैं।
सज्जनं समया सज्जनाः वसन्ति = सज्जन के पास सज्जन रहते हैं।
गुरुकुले अन्तेवासिनः गुरुं समया निवसन्ति = गुरुकुल में विद्यार्थी गुरु के सानिध्य में रहते हैं।
चिकित्सालयं निकषा उद्यानं स्यात् = अस्पताल के समीप बगीचा होना चाहिए।
हा पुत्रम् इति कृत्वा माता शोचति = माता पुत्र के लिए शोक कर रही है।
हा धनम् इति कृत्वा वणिक् संतपति = बनिया धन के लिए संताप कर रहा है।
धिक् शिष्यं यो गुरुम् अभिद्रुह्यति = गुरुद्रोह करनेवाले शिष्य को धिक्कार है !
धिक् अधिकारिणम् उत्कोचं गृह्णाति = रिश्वत लेनेवाले अधिकारी पर लानत है।
वेदं प्रति प्रत्यावर्तेत विश्वम् = वेद की ओर संसार लौटे।
बुभुक्षितं न प्रतिभाति किञ्चित् = भूखे को कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
प्राणीरूप-अप्राणीरूप-जगत् उपर्युपरि परमेश्वरो वर्तते = जड़ और चेतन जगत के ऊपर परमेश्वर है। (ईश्वर का शासन है)
मेघान् अध्यधि वायुयानम् उड्डीयते = बादलों के ऊपर विमान उड़ रहा है।
वृक्षम् अधोऽधः तपस्वी शेते = पेड़ के नीचे तपस्वी सो रहा है।
अनुस्वार सन्धि
वर्ण/वर्ग प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पञ्चम
कवर्ग क् ख् ग् घ् ङ्
चवर्ग च् छ् ज् झ् ञ्
टवर्ग ट् ठ् ड् ढ् ण्
तवर्ग त् थ् द् ध् न्
पवर्ग प् फ् ब् भ् म्
अन्तस्थ वर्ण य् र् ल् व्
ऊष्म वर्ण श् ष् स् ह्
अच् = स्वर (अ आ… आदि)
हल् = व्यञ्जन (क् ख्… आदि)
अनुस्वार = ं (कं)
अनुनासिक = ँ (कँ)
अवग्रह चिह्न = ऽ (रामो ऽ स्ति)
(पदान्त मकार को हल अर्थात् कोई व्यञ्जन बाद में हो तो अनुस्वार ( ं ) आदेश हो जाता है। यथा-)
रामम् पश्यति = रामं पश्यति = राम को देख रहा है।
भाण्डम् शुध्यति = भाण्डं शुध्यति = बरतन शुद्ध कर रहा है।
वस्त्रम् स्त्रम् शुष्यति = वस्त्रं स्त्रं शुष्यति = कपड़ा सुखा रहा है।
काष्ठम् भिनत्ति = काष्ठं भिनत्ति = लकड़ी फाड़ रहा है।
पटम् दृणाति = पटं दृणाति = थान को फाड़ रहा है।
पिष्टान्नम् खादति = पिष्टान्नं खादति = पंजीरी खा रहा है।
प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कृपया त्रुटियों से अवगत कराते नए सुझाव अवश्य दें.. ‘‘आर्यवीर’’
अनुवादिका : आचार्या शीतल आर्या (पोकार) (आर्यवन आर्ष कन्या गुरुकुल, आर्यवन न्यास, रोजड, गुजरात, आर्यावर्त्त)
टंकन प्रस्तुति : ब्रह्मचारी अरुणकुमार ‘‘आर्यवीर’’ (आर्ष शोध संस्थान, अलियाबाद, तेलंगाणा, आर्यावर्त्त)
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अधुना = અત્યારે , अभी
गच्छामि = જાઉં છું जाता हूँ
अधुना अहं नागपुरं गच्छामि।
અત્યારે હું નાગપુર જાઉં છું
अभी मैं नागपुर जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं भुजं गच्छामि।
અત્યારે હું ભુજ જાઉં છું
अभी मैं भुजं जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं मन्दिरं गच्छामि।
અત્યારે હું મંદિર જાઉં છું
अभी मैं मंदिर जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं विद्यालयं गच्छामि।
અત્યારે હું વિદ્યાલય જાઉં છું
अभी मैं विद्यालय जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं उद्यानं गच्छामि।
અત્યારે હું બગીચા માં જાઉં છું
अभी मैं बगीचे में जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं काशीं गच्छामि।
અત્યારે હું કાશી જાઉં છું
अभी मैं काशी जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं बद्रीनाथं गच्छामि।
અત્યારે હું બદરીનાથ જાઉં છું
अभी मैं बद्रीनाथ जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं न गच्छामि।
હવે હું નથી જતો.
अब मैं नहीं जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं गृहं गच्छामि।
હવે હું ઘરે જાઉં છું
अब मैं घर जाता हूँ / जा रहा हूँ।
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लालबहादुर शास्त्री महाभागः अस्माकं द्वितीयः प्रधानमन्त्री आसीत्।
= लालबहादुर शास्त्री महोदय हमारे द्वितीयः प्रधानमन्त्री थे।
सः द्वितीयः न अपितु अद्वितीयः आसीत्।
= वे द्वितीय नहीं बल्कि अद्वितीय थे।
धनस्य अभावः अपि सन् सः उच्चशिक्षां प्राप्तवान्।
= धन का अभाव होते हुए भी उन्होंने उच्च शिक्षा पाई।
संस्कृतविषये शास्त्री पदवीं काशीविश्वविद्यालयतः प्राप्तवान्।
= संस्कृत विषय में शास्त्री पदवी काशीविश्वविद्यालय से पाई।
सः स्वाधीनतान्दोलने अपि सक्रियः आसीत्।
= वे स्वधीनता आंदोलन में भी सक्रिय रहे।
प्रथमः प्रधानमंत्री यदा दिवंगतः जातः तदा लालबहादुर शास्त्री देशस्य द्वितीयः प्रधानमन्त्री रूपेण चितः।
= पहले प्रधानमंत्री जब दिवंगत हो गए तब लालबहादुर शास्त्री जी दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए।
तस्य शासनकाले भारते अन्नाभावः आसीत्।
= उनके शासनकाल में भारत में अन्न का अभाव था।
अतएव सः एकवारम् अन्नं खादति स्म।
= इसलिये वे एकबार अन्न खाते थे।
सः अतीव सात्विकः जनः आसीत्।
= वो अति सात्विक जन थे।
तथापि सः राष्टरक्षार्थं सर्वदा तत्परः भवति स्म।
= फिर भी वे राष्ट्ररक्षा के लिये हमेशा तत्पर रहते थे।
पाकिस्थानेन यदा आक्रमणः कृतः तदा लालबहादुर शास्त्रिणा बलेन प्रतिकारस्य निर्णयः कृतः।
= पाकिस्तान ने जब आक्रमण किया तब लालबहादुर शास्त्री जी ने बल से सामना करने का निर्णय किया।
अस्माकं सैनिकाः स्वं पराक्रमं प्रदर्शितवन्तः।
= हमारे सैनिकों ने अपना पराक्रम दिखाया।
अन्ततोगत्वा पाकिस्थानस्य पराजयः अभवत्।
= अंत में पाकिस्तान की पराजय हुई।
अहो दुःखम् ! अस्माकं लोकप्रियः प्रधानमन्त्री छलेन सूदितः।
= ओह दुख है , हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री को छल से मार दिया गया।
अद्य लालबहादुरशास्त्री महाभागस्य जन्मजयन्ति अस्ति।
= आज लालबहादुर शास्त्री जी की जन्म जयन्ति है।
कोटि कोटि वन्दनानि।
एका भगिनी दूरवाणीं कृतवती।
= एक बहन ने फोन किया ।
"अहं संस्कृतं नहीं जानती हूँ।
अहं चाहती हूँ।
क्या करोमि ? "
तस्याः सम्वादं श्रुत्वा आनन्दः जातः ।
= उसका सम्वाद सुनकर खुशी मिली ।
यथा अहं पंजाबी भाषायां वक्तुं प्रयत्नं करोमि।
= जैसे मैं पंजाबी बोलने का प्रयत्न करता हूँ।
" अहं त्वाडे नाल वार्तालापं करोमि। "
( 👆मम पंजाबी )
अहं मराठी भाषायां वक्तुं प्रयत्नं करोमि।
= मैं मराठी बोलने का प्रयत्न करता हूँ।
तुमचा नांव किम् ?
( 👆मम मराठी )
तथैव सा अपि संस्कृते वक्तुं यत्नं कृतवती।
= वैसे ही उसने संस्कृत में बोलने का यत्न किया।
यः यत्नं करोति सः एव सफलतां प्राप्नोति।
= जो यत्न करता है वही सफलता पाता है।
यः निःसंकोचं वदति सः एव सफलः भवति।
= जो निःसंकोच बोलता है वह ही सफल होता है ।
अधुना सर्वत्र अवकरपात्रं दृश्यते।
= अब सब जगह कूड़ादान दिखता है।
आपणिकाः आपणात् बहिः अवकरपात्रं स्थापयन्ति।
= दुकानदार दूकान से बाहर कूड़ेदान को रखते हैं।
गृहस्वामिनः अपि गृहेषु अवकरपात्रं स्थापयन्ति।
= घरों के मालिक घरों में कूड़ादान रखते हैं।
उच्छिष्ठम् अन्नं पशूनां कृते पृथक स्थापयन्ति।
= जूठा भोजन पशुओं के लिये अलग रखते हैं।
अवशिष्ठम् अवकरम् अवकरपात्रे क्षिपन्ति।
= बाकी बचा कचरा कूड़ेदान में फेंकते हैं।
कर्गदानि क्षिपन्ति।
= कागज फेंकते हैं।
कूपीः क्षिपन्ति।
= बोतलें फेंकते हैं।
बालकाः अपि ज्येष्ठानाम् अनुकरणं कुर्वन्ति।
= बच्चे भी बड़ों का अनुकरण करते हैं।
प्रातःसायं अवकरपात्रं रिक्तं क्रियते।
= सुबह शाम कूड़ादान खाली किया जाता है।
स्वच्छता सर्वेभ्यः रोचते।
= स्वच्छता सबको पसन्द है।
---- अखिलेश आचार्य
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