स्वागतम्

 आइए सरल विधि से संस्कृत में बात करना सीखें । यहाँ 👇🏻 क्लिक किजिए और प्रतिदिन क्रमशः एक एक पाठ का अभ्यास किजिए 👇🏻

Click here क्लिक क्लिक 



50) संस्कृत वाक्य अभ्यास

 संस्कृत वाक्य अभ्यास

Sanskrit sentence study





(1.) क्लास रूमः--कक्ष्या

(2.) बेंच (पुस्तक रखने की)---दीर्घोत्पीठिका,

(3.) बेंच (बैठने की)---दीर्घपीठिका,

(4.) मेज---उत्पीठिका,

(5.) कुर्सीः--आसन्दः,

(6.) बैगः--स्यूतः,

(7.) किताब--पुस्तकम्,

(8.) कलम--लेखनी (कलमः),

(9.) लडकी--बाला या बालिका,

♨️

(10.) लडका--बालः,

(11.) छाता---छत्रम्,

(12.) टीचर (पुरुष)---शिक्षकः,

(13.) टीचर (लेडी) शिक्षिका,

(14.) अलमारी--काष्ठमञ्जूषा,

(15.) आरामकुर्सी---सुखासन्दिका,

(16.) इंक पेंसिल, डॉट पेन--मसितूलिका,

(17.) शूज--उपानह्,

(18.) ड्रेस---परिधानम्,

(19.) ओढनी--प्रच्छदपटः,

(20.) ओवरकोट---बृहतिका,

(21.) कंघी---प्रसाधनी,

(22.) कक्षा का साथी---सतीर्थ्यः, सहपाठी,

(23.) कमरा---कक्षः,

(24.) खिडकी---गवाक्षः,

(25.) पंखा---व्यजनम्,

(26.) एसी---वातायनम्,

(27.) डेस्टर--मार्जकः,

(28.) इन्स्पेक्टर---निरीक्षकः,

(29.) कम्प्यूटर---संगणकः,

(30.) कागज---कर्गदः, (कागदः) (कर्गलम्)

(31.) रिफिल---मसियष्टिः,

(32.) कॉपी---सञ्चिका,

(33.) रजिस्टर---पञ्जिका,

(34.) कार्टुन--उपहासचित्रम्,

(35.) ड्रॉइंग---रेखाचित्रम्,

(36.) कॉलेज--महाविद्यालयः,

(37.) स्कूल---विद्यालयः,

(38.) यूनीवर्सिटी--विश्वविद्यालयः,

(39.) किवाड--कपाटम्,

(40.) गेट--द्वारम्,

(41.) मेन गेट---मुख्यद्वारम्,

(42.) दीवार---भित्तिका,

(43.) दीवारघडी---भित्तिघटिका,

(44.) घडी---घटिका,

(45.) दवात का ढक्कन--कुप्पी,

(46.) कुर्ता--कञ्चुकः,

(47.) कैंची---कर्तरी,

(48.) कोठरी---लघुकक्षः,

(49.) गेटकीपर--द्वारपालः,

(50.) पिअन--सेवकः,

(51.) क्लर्क--लिपिकारः, करणिकः,

(52.) मैदान---क्षेत्रम्,

(53.) खेल का मैदान--क्रीडाक्षेत्रम्,

(54.) स्पोर्ट्स--क्रीडा,

(55.) गेन्द---कन्दुकः,गेन्दुकम्,

(56.) फुटबॉल---पादकन्दुकम्,

(57.) घण्टा--होरा,

(58.) चपरासी---लेखहारकः, प्रेष्यः,

(59.) चप्पल---पादुका, पादुुः,

(60.) चॉक--कठिनी,

(61.) चांसलर--कुलपतिः,

(62.) चारों ओर मुडने वाली कुर्सी---पर्पः,

(63.) रंग---वर्णः,

(64.) चिह्न-अंकः,

(65.) चोटी---शिखा. सानुः,

(66.) रिसिस---जलपानवेला,

(67.) जिल्द--प्रावरणम्,

(68.) झाडू--मार्जनी,

(69.) टाइम टेबल--समय-सारणी,

(70.) कैरीकुलम्---पाठ्यक्रमः,

(71.) टेनिस का खेल--प्रक्षिप्तकन्दुकक्रीडा,

(72.) एजुकेशन टाइरेक्टर---शिक्षासञ्चालकः,

(73.) डिप्टी डाइरेक्टर (शिक्षा)--उपशिक्षासञ्चालकः,

(74.) डेस्क--लेखनपीठम्,

(75.) ड्रॉइंग रूप---उपवेशगृहम्,

(76.) दरी--आस्तरणम्,

(77.) दस्ता (कागज का)--दस्तकः,

(78.) निब---लेखनीमुखम्,

(79.) नेट --जालम्,

(80.) नेलकटर---नखनिकृन्तनम्,

(81.) नेलपॉलिश--नखरञ्जनम्,

(82.) पायजामा--पादयामः,

(83.) पॉलिश---पादुरञ्जनम्, पादुरञ्जकः,

(84.) पेंसिल--तूलिका,

(85.) पैण्ट--आप्रपदीनम्,

(86.) पोर्टिको (बरामदा)---प्रकोष्ठः,

(87.) प्रिंसिपल---(पु.) प्रधानाचार्यः, प्रधानाध्यापकः प्राचार्यः, 

(स्त्री) प्रधानाचार्या, प्रधानाध्यापिका, प्राचार्या,

(88.) प्रोफेसर--प्राध्यापकः,

(89.) फर्श---कुट्टिमम्,

(90.) फाउण्टेन पेन---धारालेखनी,

(91.) फाइल--पत्रसञ्चयिनी,

(92.) फीस--शुल्कः,

(93.) बरामदा--वरण्डः,

(94.) बाथरूम---स्नानागारः,

(95.) बेंच--काष्ठासनम्,

(96.) बैंड---वादित्रगणः,

(97.) बैडमिण्टन---पत्रिक्रीडा,

(98.) मेज--फलकम्,

(99.) पढाई की मेज--लेखनफलकम्,

(100.) यूनिफॉर्म---एकपरिधानम्, एकवेषः


संस्कृत वाक्याभ्यासः  

~~~~~~~~~~~~~~~


श्री अनन्तः अपृच्छत् 

= अनन्त जी ने पूछा 


कथम् अस्ति भोः ? 

=  कैसे / कैसी हो ? 


अहम् अलिखम् / अवदम् ।

= मैंने लिखा / बोला 


अहं कुशली अस्मि ।

= मैं कुशल हूँ ।


अहं प्रसन्नः अस्मि ।

= मैं खुश हूँ ।


पूनम भगिनी अलिखत् / अवदत् ।

= पूनम बहन ने लिखा / बोला 


अहं कुशलिनी अस्मि ।

= मैं कुशल हूँ ।


अहं प्रसन्ना अस्मि ।

= मैं खुश हूँ


पत्नी -  अल्पाहारे फलानि सन्ति।

        = नाश्ते में फल हैं। 


पतिः - फलानि एव देहि।

        = फल ही दो । 


पत्नी - केवलं कदलीफलानि सन्ति।

       = केवल केले हैं। 


पतिः - त्वं तु फलानि वदसि स्म।

       = तुम तो बहुत सारे फल बोल रही थीं । 


पत्नी - बहूनि कदलीफलानि सन्ति ।

        = बहुत से केले हैं। 


पतिः - कदलीफलानि एव देहि।

       = केले ही दे दो। 


पत्नी - आनयामि। 

        = लाती हूँ। 


         - स्वीकरोतु। 

         = लीजिये। 


पतिः - ओह , लघूनि सन्ति कदलीफलानि। 

        = ओह , केले छोटे हैं। 


पत्नी - आं , केरलतः आगतानि।

        = हाँ , केरल से आए हैं।


पतिः - केरले लघूनि कदलीफलानि भवन्ति खलु ? 

       = केरल में छोटे केले होते हैं क्या ? 


पत्नी - आम् ।

        = हाँ 

------------------

संस्कृत वाक्याभ्यासः  

~~~~~~~~~~~~~~~


सः प्रेम्णा माम् अनयत् 

= वह मुझे प्रेम से ले गया 


अहम् अपृच्छम् 

= मैंने पूछा ।


" कुत्र नयति ?" 

= कहाँ ले जा रहे हो ? 


चलतु ..... यदा तत्र प्राप्स्यति ....

= चलिये .... आप जब वहाँ पहुंचेंगे .... 


तदा प्रसन्नः भविष्यति ।

= तब खुश हो जाएंगे 


एक घण्टा अनन्तरम् अहं तत्र प्राप्तवान् 

= एक घण्टे के बाद मैं वहाँ पहुँचा 


(आवां द्वौ प्राप्तवन्तौ 

   = हम दोनों पहुँचे )


अत्र तु पुरातनः दुर्गः अस्ति ।

= यहाँ तो पुराना किला है 


एषः सज्जनः माम् रोहा ग्रामम् आनीतवान् अस्ति ।

= ये सज्जन मुझे रोहा गाँव लाए हैं ।

------------


सा प्रातः षट्वादने धेनवे तृणं ददाति। 

= वह प्रातः छः बजे गाय को घास देती है। 


सपाद षट्वादने धेनुं दोग्धि। 

= सवा छः बजे  गाय दुहती है। 


सार्ध षट्वादने सा गोमयेन  भूमिं लिम्पति।

= साढ़े छः बजे वह गोबर से भूमि लीपती है।


सा भूमौ रङ्गावलीं करोति। 

= वह भूमि पर रंगोली करती है। 


अनन्तरं सप्तवादने सा गोदुग्धस्य पायसं पचति।

= बाद में वह सात बजे गाय के दूध की खीर पकाती है। 


तस्याः ग्रामे अद्य यज्ञः भवति। 

= उसके गाँव में आज यज्ञ हो रहा है। 


अष्टवादने सा पायसं यज्ञशालायां नयति। 

= वह आठ बजे यज्ञशाला में खीर ले जाती है। 


सा यज्ञे पायसस्य आहुतिं ददाति। 

= वह यज्ञ में खीर से आहुति देती है।


यज्ञे सा अपि मन्त्रपाठं करोति। 

= यज्ञ में वह भी मंत्रपाठ करती है। 


शरदपूर्णिमायां सा सर्वेभ्यः पायसं ददाति। 

= शरदपूर्णिमा पर वह सबको खीर देती है।

-------

मातुलानी - संजय ! उत्तिष्ठ ।

             = संजय , उठो ।


             - संजयः तु अत्र नास्ति।

             = संजय तो यहाँ नहीं है। 


             - शीघ्रमेव उत्थितवान् ।

             = जल्दी उठ गया वह। 


             - एषः तु अत्र ध्यानं करोति।

             = ये तो यहाँ ध्यान कर रहा है। 


             - संजयः ध्यानं करोति !!!  आश्चर्यम् 

            = संजय ध्यान कर रहा है , आश्चर्य । 


( संजयः यदा उत्थास्यति तदा प्रक्ष्यामि।

  = संजय जब उठता है तब पूछती हूँ। )


मातुलानी - त्वं कदा आरभ्य ध्यानं करोषि ? 

          = तुम कब से ध्यान करने लगे। 


संजयः - गतमासे अहं संस्कारशिबिरं गतवान्। 

         = पिछले महीने मैं संस्कार शिबिर गया था। 


         तत्र ते योगध्यानस्य अभ्यासं कारितवन्तः ।

        = वहाँ उन्होंने योग ध्यान का अभ्यास कराया।        


मातुलानी - संजय !! त्वं तु श्रेष्ठः जातः। 

             = तुम तो सुधर गए।

----

पाठ : (९) तृतीया विभक्ति (१) + यण सन्धिः

{करण कारक (क्रिया सम्पन्न करने का साधन) में तृतीया विभक्ति होती है।}


मथन्या मथ्नाति दधि माता = मां मथनी से दही बिलो रही है।

पर्पेण पर्पति पर्पिकः = पंगू (बैसाखीवाला) बैसाखी से चलता है।

वणिक् तुलया धान्यं माति = बनिया तराजू से धान तोल रहा है।

लेखिका लेखन्या लेखं लिखति = लेखिका लेखनी से लेख लिखती है।

सूक्ष्मशरीरेण आत्मा अतति = सूक्ष्म शरीर से आत्मा सतत गति (एक से दूसरे शरीर में) करता है।

पक्षेण पक्षिणः डयन्ते = पंख से पक्षी उड़ते हैं।

हस्तेन हस्ती भारं वहति = सूंड से हाथी भार ढोता है।

मनस्वी मनसा मनुते = मनस्वी मन से मनन करता है।

मनीषी मनीषया मनः ईषते = मनीषी बुद्धि से मन को जानता है।

पण्डितः पण्ड्या पण्डितत्वं प्राप्नोति = पण्डित बुद्धि (=पण्डा) से विद्वत्ता (=पण्डितत्व) को प्राप्त करता है।

बुद्धः बुद्ध्या बोध्यम् अवबुध्यते = ज्ञानी (=बुद्धः) बुद्धि से जाननेयाग्य पदार्थों को जानता है।

वेत्ता विद्यया विश्वं वेत्ति = विद्वान् विद्या से सब कुछ जानता है।

स्मर्त्ता स्मृत्या भूतकालं स्मरति = याद करनेवाला स्मृति से भूतकाल को याद करता है।

ज्ञानी ज्ञानेन ईश्वरमपि जानाति = ज्ञानी ज्ञान से ईश्वर को भी जान लेता है।

भर्त्ता भृत्त्या भृत्यं भरति = पालक (=भर्त्ता) वेतन (=भृत्तिः) से सेवक (=भृत्य) का भरण-पोषण करता है।

यात्री यानेन यात्रास्थलं याति = यात्री वाहन से यात्रास्थल को जाता है।

दाता दानेन दरिद्रं उपकरोति = दाता दान से दरिद्र का उपकार करता है।

ध्याता ध्यानेन धर्त्तारं ध्यायति = ध्यान करनेवाला (=ध्याता) ध्यान के द्वारा धारण करनेवाले ईश्वर (=धर्त्ता) का चिन्तन करता है।

द्रष्टा दर्शनेन दृश्यं पश्यति = ज्ञानी (=द्रष्टा) दर्शनशास्त्र स्त्र के द्वारा संसार (=दृश्यम्) को देखता है।

चित् चित्तेन चलाचलं जगत् चेतयति = चेतन आत्मा चित्त से चल-अचल जगत् को जानता है।

आनन्दः आनन्देन अस्मान् आनन्दयति = आनन्दस्वरूप ईश्वर हमें आनन्द देकर आनन्दित करता है।

अद्भिः गात्राणि शुध्यन्ति = पानी से शरीरावयव साफ होते हैं।

मनः सत्येन शुध्यति = मन सत्य से पवित्र होता है।

विद्यातपोभ्यां भूतात्मा शुध्यति = विद्या और तप से जीवात्मा शुद्ध होता है।

क्षान्त्या शुध्यन्ति विद्वांसः = विद्वान् क्षमा से शुद्ध होते हैं।

दानेन अकार्यकारिणः शुध्यन्ति = दान के द्वारा पापी शुद्ध होते हैं।

प्रच्छन्नपापाः जप्येन शुद्ध्यन्ति = गुप्त रूप (=मानसिकरूप) से पाप करनेवाले जप से शुद्ध होते हैं।

तपसा वेदवित्तमाः शुद्ध्यन्ति = तप से उत्तम विद्वान् (=वेदवित्) शुद्ध होते हैं।

उच्छिष्टं पात्रं मृत्तोयैः शुद्ध्यति = जूठा बरतन मिट्टी व पानी से साफ होता है।

धातवः अग्निना शुद्ध्यन्ति = धातुएं अग्नि से शुद्ध होती है।

प्राणायामैः दहेत् दोषान् = प्राणायाम से दोषों को भस्म कर देवें।

प्राणायामेन क्षीयते प्रकाशावरणम् = प्राणायाम से अज्ञान (=प्रकाश का आवरण) नष्ट होता है।

योगाङ्गानुष्ठानेन ज्ञानदीप्तिर्भवति = योग के अंगों के अनुष्ठान से ज्ञान बढ़ता है।

मनःप्रग्रहेण आत्मानं संयच्छेत् = मन रूपी लगाम से आत्मा को नियन्त्रित करे।

समर्थाः अपि स्वकर्मभिः वध्यमानाः दृश्यन्ते = समर्थ लोग भी अपने बुरे कर्मों के कारण नष्ट हुए दिखाई देते हैं।

पुण्येन पुण्यलोकं जयति = पुण्य कर्मों से (व्यक्ति) स्वर्ग (=पुण्यलोक) को जीतता है (प्राप्त करता है)।

पापेन पापलोकं गच्छति = पाप कर्मों से नरक को प्राप्त करता है।

गन्धेन गावः पश्यन्ति = गाएं गन्ध से देखती हैं।

वेदैः पश्यन्ति ब्रह्मणाः = ब्रह्मण वेदों से देखते हैं।

चारैः पश्यन्ति राजानः = राजा लोग गुप्तचरों से देखते हैं।

चक्षुर्भ्यामितरे जनाः पश्यन्ति = आंखों से अन्य / सामान्य (=इतर) लोग देखते हैं।

आत्मना आत्मानम् अन्विच्छेत् = अपने आप से अपने आप को जाने।

विद्यया विन्दते वसु = विद्या से धन प्राप्त होता है।

अविद्यया मृत्युं तरति = अविद्या (अपरा विद्या) से मृत्यु (शारीरिक कष्ट, बाधा, विपदाएं) से तर जाता है।

विद्यया अमृतम् अश्नुते = विद्या (परा विद्या) से अमृत (मोक्ष सुख) को प्राप्त कर लेता है।

न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः = मानव को धन से कभी तृप्त नहीं किया जा सकता।

क्षमया किं न साध्यते ? = क्षमा से क्या प्राप्त नहीं होता ?

वाचा वदामि मधुमत् = वाणी से मैं मीठा बोलूं।

स्वेन क्रतुना संवदेत = (व्यक्ति) अपने कर्म से बोले।

क्रतुना ब्रवीतु = कर्म (आचरण) से बोलो।

विमानेन दिवं विगाहते = विमान से आकाश में घूम रहा है।

यत्नेन सिद्ध्यन्ति कामाः = पुरुषार्थ से कामनाएं पूर्ण होती हैं।

धर्मेण एधते नित्यम् = धर्म से (व्यक्ति) नित्य ही वृद्धि को प्राप्त होता है।

हविषा हूताशनो वर्धते = हवी से अग्नि बढ़ती है।

पुरुषार्थेन कार्याणि सिद्ध्यन्ति, न मनोरथैः = मेहनत से कार्यों की सिद्धि होती है न कि ख्याली पुलाव पकाने से।

सप्तभिः अश्वैः सविता संचरति सदा = सूर्य सदा सात घोड़ों से चलता है।

धनलोलुपः जलेन दुग्धं वर्धयति = धन का लोभी पानी से दूध बढ़ा रहा है।

अन्नेन भूतानि जीवन्ति = अन्न से प्राणी जीते हैं।

प्राणैः प्राणिनः प्राणन्ति = प्राणों से प्राणी जीते हैं।

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम = हम कानों से कल्याणकारी बातें सुनें।

भद्रं पश्येम अक्षभिः = आंखों से हम भला देखें।

माम् अद्य मेधया मेधाविनं कुरु = मुझे आज ही मेधा बुद्धि से मेधावी करो।

अस्मान् प्रजया, पशुभिः, ब्रह्मवर्चसेन, अन्नाद्येन समेधय = हमें प्रजा से, पशु (धन-सम्पत्ति) से, ब्रह्मतेज से, अन्न (भोग्य पदार्थों) से तथा अद्य (भोग सामर्थ्य) से अच्छी तरह बढ़ा।

आयुः यज्ञेन कल्पन्ताम् = आयु को यज्ञ से सम्पादित करो।

दीपेन दीपं दीप्येत् = दीपक से दीपक जलाना चाहिए।

यण् सन्धिः


इको यण् अचि। इक् = इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, के बाद अच् = अ आ… आदि स्वर हो तो इ एवं ई को य्, उ एवं ऊ को व्, ऋ तथा ॠ को र् तथा लृ को ल् हो जाता है।


इ / ई + अच् (इ, ई को छोड़ कर) = इ / ई को य्

उ / ऊ + अच् (उ, ऊ को छोड़ कर) = उ / ऊ को व्

ऋ / ॠ + अच् (ऋ, ॠ को छोड़ कर) = ऋ / ॠ को र

लृ + अच् = लृ को ल्


दधि + अशान = दध्यशान।

तिष्ठतु दध्यशान त्वं शाकेन = दही रहने दे, तू शाक से खा ले।


दधि + ओदनम् = दध्योदनम्।

दध्योदनं रुच्या खादति बालः = बालक दही-चावल रुची से खाता है।


अभि + आवहति = अभ्यावहति।

अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता = सुभाषित वाणी विविध प्रकार के कल्याण / सुखों को प्राप्त कराती है।


हि + एव = ह्येव।

आत्मा ह्येवात्मनो बन्धुः = आत्मा का भाई आत्मा खुद ही है।


नदी + अस्मान् = नद्यस्मान्।

नद्यस्मान् जलेन तृप्यति = नदी हमको जल से तृप्त करती है


---- अखिलेश आचार्य


संस्कृत वाक्य अभ्यास - 51 Click Here





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ