संस्कृत वाक्य अभ्यास
Sanskrit sentence study
(1.) क्लास रूमः--कक्ष्या
(2.) बेंच (पुस्तक रखने की)---दीर्घोत्पीठिका,
(3.) बेंच (बैठने की)---दीर्घपीठिका,
(4.) मेज---उत्पीठिका,
(5.) कुर्सीः--आसन्दः,
(6.) बैगः--स्यूतः,
(7.) किताब--पुस्तकम्,
(8.) कलम--लेखनी (कलमः),
(9.) लडकी--बाला या बालिका,
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(10.) लडका--बालः,
(11.) छाता---छत्रम्,
(12.) टीचर (पुरुष)---शिक्षकः,
(13.) टीचर (लेडी) शिक्षिका,
(14.) अलमारी--काष्ठमञ्जूषा,
(15.) आरामकुर्सी---सुखासन्दिका,
(16.) इंक पेंसिल, डॉट पेन--मसितूलिका,
(17.) शूज--उपानह्,
(18.) ड्रेस---परिधानम्,
(19.) ओढनी--प्रच्छदपटः,
(20.) ओवरकोट---बृहतिका,
(21.) कंघी---प्रसाधनी,
(22.) कक्षा का साथी---सतीर्थ्यः, सहपाठी,
(23.) कमरा---कक्षः,
(24.) खिडकी---गवाक्षः,
(25.) पंखा---व्यजनम्,
(26.) एसी---वातायनम्,
(27.) डेस्टर--मार्जकः,
(28.) इन्स्पेक्टर---निरीक्षकः,
(29.) कम्प्यूटर---संगणकः,
(30.) कागज---कर्गदः, (कागदः) (कर्गलम्)
(31.) रिफिल---मसियष्टिः,
(32.) कॉपी---सञ्चिका,
(33.) रजिस्टर---पञ्जिका,
(34.) कार्टुन--उपहासचित्रम्,
(35.) ड्रॉइंग---रेखाचित्रम्,
(36.) कॉलेज--महाविद्यालयः,
(37.) स्कूल---विद्यालयः,
(38.) यूनीवर्सिटी--विश्वविद्यालयः,
(39.) किवाड--कपाटम्,
(40.) गेट--द्वारम्,
(41.) मेन गेट---मुख्यद्वारम्,
(42.) दीवार---भित्तिका,
(43.) दीवारघडी---भित्तिघटिका,
(44.) घडी---घटिका,
(45.) दवात का ढक्कन--कुप्पी,
(46.) कुर्ता--कञ्चुकः,
(47.) कैंची---कर्तरी,
(48.) कोठरी---लघुकक्षः,
(49.) गेटकीपर--द्वारपालः,
(50.) पिअन--सेवकः,
(51.) क्लर्क--लिपिकारः, करणिकः,
(52.) मैदान---क्षेत्रम्,
(53.) खेल का मैदान--क्रीडाक्षेत्रम्,
(54.) स्पोर्ट्स--क्रीडा,
(55.) गेन्द---कन्दुकः,गेन्दुकम्,
(56.) फुटबॉल---पादकन्दुकम्,
(57.) घण्टा--होरा,
(58.) चपरासी---लेखहारकः, प्रेष्यः,
(59.) चप्पल---पादुका, पादुुः,
(60.) चॉक--कठिनी,
(61.) चांसलर--कुलपतिः,
(62.) चारों ओर मुडने वाली कुर्सी---पर्पः,
(63.) रंग---वर्णः,
(64.) चिह्न-अंकः,
(65.) चोटी---शिखा. सानुः,
(66.) रिसिस---जलपानवेला,
(67.) जिल्द--प्रावरणम्,
(68.) झाडू--मार्जनी,
(69.) टाइम टेबल--समय-सारणी,
(70.) कैरीकुलम्---पाठ्यक्रमः,
(71.) टेनिस का खेल--प्रक्षिप्तकन्दुकक्रीडा,
(72.) एजुकेशन टाइरेक्टर---शिक्षासञ्चालकः,
(73.) डिप्टी डाइरेक्टर (शिक्षा)--उपशिक्षासञ्चालकः,
(74.) डेस्क--लेखनपीठम्,
(75.) ड्रॉइंग रूप---उपवेशगृहम्,
(76.) दरी--आस्तरणम्,
(77.) दस्ता (कागज का)--दस्तकः,
(78.) निब---लेखनीमुखम्,
(79.) नेट --जालम्,
(80.) नेलकटर---नखनिकृन्तनम्,
(81.) नेलपॉलिश--नखरञ्जनम्,
(82.) पायजामा--पादयामः,
(83.) पॉलिश---पादुरञ्जनम्, पादुरञ्जकः,
(84.) पेंसिल--तूलिका,
(85.) पैण्ट--आप्रपदीनम्,
(86.) पोर्टिको (बरामदा)---प्रकोष्ठः,
(87.) प्रिंसिपल---(पु.) प्रधानाचार्यः, प्रधानाध्यापकः प्राचार्यः,
(स्त्री) प्रधानाचार्या, प्रधानाध्यापिका, प्राचार्या,
(88.) प्रोफेसर--प्राध्यापकः,
(89.) फर्श---कुट्टिमम्,
(90.) फाउण्टेन पेन---धारालेखनी,
(91.) फाइल--पत्रसञ्चयिनी,
(92.) फीस--शुल्कः,
(93.) बरामदा--वरण्डः,
(94.) बाथरूम---स्नानागारः,
(95.) बेंच--काष्ठासनम्,
(96.) बैंड---वादित्रगणः,
(97.) बैडमिण्टन---पत्रिक्रीडा,
(98.) मेज--फलकम्,
(99.) पढाई की मेज--लेखनफलकम्,
(100.) यूनिफॉर्म---एकपरिधानम्, एकवेषः
संस्कृत वाक्याभ्यासः
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श्री अनन्तः अपृच्छत्
= अनन्त जी ने पूछा
कथम् अस्ति भोः ?
= कैसे / कैसी हो ?
अहम् अलिखम् / अवदम् ।
= मैंने लिखा / बोला
अहं कुशली अस्मि ।
= मैं कुशल हूँ ।
अहं प्रसन्नः अस्मि ।
= मैं खुश हूँ ।
पूनम भगिनी अलिखत् / अवदत् ।
= पूनम बहन ने लिखा / बोला
अहं कुशलिनी अस्मि ।
= मैं कुशल हूँ ।
अहं प्रसन्ना अस्मि ।
= मैं खुश हूँ
पत्नी - अल्पाहारे फलानि सन्ति।
= नाश्ते में फल हैं।
पतिः - फलानि एव देहि।
= फल ही दो ।
पत्नी - केवलं कदलीफलानि सन्ति।
= केवल केले हैं।
पतिः - त्वं तु फलानि वदसि स्म।
= तुम तो बहुत सारे फल बोल रही थीं ।
पत्नी - बहूनि कदलीफलानि सन्ति ।
= बहुत से केले हैं।
पतिः - कदलीफलानि एव देहि।
= केले ही दे दो।
पत्नी - आनयामि।
= लाती हूँ।
- स्वीकरोतु।
= लीजिये।
पतिः - ओह , लघूनि सन्ति कदलीफलानि।
= ओह , केले छोटे हैं।
पत्नी - आं , केरलतः आगतानि।
= हाँ , केरल से आए हैं।
पतिः - केरले लघूनि कदलीफलानि भवन्ति खलु ?
= केरल में छोटे केले होते हैं क्या ?
पत्नी - आम् ।
= हाँ
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संस्कृत वाक्याभ्यासः
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सः प्रेम्णा माम् अनयत्
= वह मुझे प्रेम से ले गया
अहम् अपृच्छम्
= मैंने पूछा ।
" कुत्र नयति ?"
= कहाँ ले जा रहे हो ?
चलतु ..... यदा तत्र प्राप्स्यति ....
= चलिये .... आप जब वहाँ पहुंचेंगे ....
तदा प्रसन्नः भविष्यति ।
= तब खुश हो जाएंगे
एक घण्टा अनन्तरम् अहं तत्र प्राप्तवान्
= एक घण्टे के बाद मैं वहाँ पहुँचा
(आवां द्वौ प्राप्तवन्तौ
= हम दोनों पहुँचे )
अत्र तु पुरातनः दुर्गः अस्ति ।
= यहाँ तो पुराना किला है
एषः सज्जनः माम् रोहा ग्रामम् आनीतवान् अस्ति ।
= ये सज्जन मुझे रोहा गाँव लाए हैं ।
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सा प्रातः षट्वादने धेनवे तृणं ददाति।
= वह प्रातः छः बजे गाय को घास देती है।
सपाद षट्वादने धेनुं दोग्धि।
= सवा छः बजे गाय दुहती है।
सार्ध षट्वादने सा गोमयेन भूमिं लिम्पति।
= साढ़े छः बजे वह गोबर से भूमि लीपती है।
सा भूमौ रङ्गावलीं करोति।
= वह भूमि पर रंगोली करती है।
अनन्तरं सप्तवादने सा गोदुग्धस्य पायसं पचति।
= बाद में वह सात बजे गाय के दूध की खीर पकाती है।
तस्याः ग्रामे अद्य यज्ञः भवति।
= उसके गाँव में आज यज्ञ हो रहा है।
अष्टवादने सा पायसं यज्ञशालायां नयति।
= वह आठ बजे यज्ञशाला में खीर ले जाती है।
सा यज्ञे पायसस्य आहुतिं ददाति।
= वह यज्ञ में खीर से आहुति देती है।
यज्ञे सा अपि मन्त्रपाठं करोति।
= यज्ञ में वह भी मंत्रपाठ करती है।
शरदपूर्णिमायां सा सर्वेभ्यः पायसं ददाति।
= शरदपूर्णिमा पर वह सबको खीर देती है।
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मातुलानी - संजय ! उत्तिष्ठ ।
= संजय , उठो ।
- संजयः तु अत्र नास्ति।
= संजय तो यहाँ नहीं है।
- शीघ्रमेव उत्थितवान् ।
= जल्दी उठ गया वह।
- एषः तु अत्र ध्यानं करोति।
= ये तो यहाँ ध्यान कर रहा है।
- संजयः ध्यानं करोति !!! आश्चर्यम्
= संजय ध्यान कर रहा है , आश्चर्य ।
( संजयः यदा उत्थास्यति तदा प्रक्ष्यामि।
= संजय जब उठता है तब पूछती हूँ। )
मातुलानी - त्वं कदा आरभ्य ध्यानं करोषि ?
= तुम कब से ध्यान करने लगे।
संजयः - गतमासे अहं संस्कारशिबिरं गतवान्।
= पिछले महीने मैं संस्कार शिबिर गया था।
तत्र ते योगध्यानस्य अभ्यासं कारितवन्तः ।
= वहाँ उन्होंने योग ध्यान का अभ्यास कराया।
मातुलानी - संजय !! त्वं तु श्रेष्ठः जातः।
= तुम तो सुधर गए।
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पाठ : (९) तृतीया विभक्ति (१) + यण सन्धिः
{करण कारक (क्रिया सम्पन्न करने का साधन) में तृतीया विभक्ति होती है।}
मथन्या मथ्नाति दधि माता = मां मथनी से दही बिलो रही है।
पर्पेण पर्पति पर्पिकः = पंगू (बैसाखीवाला) बैसाखी से चलता है।
वणिक् तुलया धान्यं माति = बनिया तराजू से धान तोल रहा है।
लेखिका लेखन्या लेखं लिखति = लेखिका लेखनी से लेख लिखती है।
सूक्ष्मशरीरेण आत्मा अतति = सूक्ष्म शरीर से आत्मा सतत गति (एक से दूसरे शरीर में) करता है।
पक्षेण पक्षिणः डयन्ते = पंख से पक्षी उड़ते हैं।
हस्तेन हस्ती भारं वहति = सूंड से हाथी भार ढोता है।
मनस्वी मनसा मनुते = मनस्वी मन से मनन करता है।
मनीषी मनीषया मनः ईषते = मनीषी बुद्धि से मन को जानता है।
पण्डितः पण्ड्या पण्डितत्वं प्राप्नोति = पण्डित बुद्धि (=पण्डा) से विद्वत्ता (=पण्डितत्व) को प्राप्त करता है।
बुद्धः बुद्ध्या बोध्यम् अवबुध्यते = ज्ञानी (=बुद्धः) बुद्धि से जाननेयाग्य पदार्थों को जानता है।
वेत्ता विद्यया विश्वं वेत्ति = विद्वान् विद्या से सब कुछ जानता है।
स्मर्त्ता स्मृत्या भूतकालं स्मरति = याद करनेवाला स्मृति से भूतकाल को याद करता है।
ज्ञानी ज्ञानेन ईश्वरमपि जानाति = ज्ञानी ज्ञान से ईश्वर को भी जान लेता है।
भर्त्ता भृत्त्या भृत्यं भरति = पालक (=भर्त्ता) वेतन (=भृत्तिः) से सेवक (=भृत्य) का भरण-पोषण करता है।
यात्री यानेन यात्रास्थलं याति = यात्री वाहन से यात्रास्थल को जाता है।
दाता दानेन दरिद्रं उपकरोति = दाता दान से दरिद्र का उपकार करता है।
ध्याता ध्यानेन धर्त्तारं ध्यायति = ध्यान करनेवाला (=ध्याता) ध्यान के द्वारा धारण करनेवाले ईश्वर (=धर्त्ता) का चिन्तन करता है।
द्रष्टा दर्शनेन दृश्यं पश्यति = ज्ञानी (=द्रष्टा) दर्शनशास्त्र स्त्र के द्वारा संसार (=दृश्यम्) को देखता है।
चित् चित्तेन चलाचलं जगत् चेतयति = चेतन आत्मा चित्त से चल-अचल जगत् को जानता है।
आनन्दः आनन्देन अस्मान् आनन्दयति = आनन्दस्वरूप ईश्वर हमें आनन्द देकर आनन्दित करता है।
अद्भिः गात्राणि शुध्यन्ति = पानी से शरीरावयव साफ होते हैं।
मनः सत्येन शुध्यति = मन सत्य से पवित्र होता है।
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा शुध्यति = विद्या और तप से जीवात्मा शुद्ध होता है।
क्षान्त्या शुध्यन्ति विद्वांसः = विद्वान् क्षमा से शुद्ध होते हैं।
दानेन अकार्यकारिणः शुध्यन्ति = दान के द्वारा पापी शुद्ध होते हैं।
प्रच्छन्नपापाः जप्येन शुद्ध्यन्ति = गुप्त रूप (=मानसिकरूप) से पाप करनेवाले जप से शुद्ध होते हैं।
तपसा वेदवित्तमाः शुद्ध्यन्ति = तप से उत्तम विद्वान् (=वेदवित्) शुद्ध होते हैं।
उच्छिष्टं पात्रं मृत्तोयैः शुद्ध्यति = जूठा बरतन मिट्टी व पानी से साफ होता है।
धातवः अग्निना शुद्ध्यन्ति = धातुएं अग्नि से शुद्ध होती है।
प्राणायामैः दहेत् दोषान् = प्राणायाम से दोषों को भस्म कर देवें।
प्राणायामेन क्षीयते प्रकाशावरणम् = प्राणायाम से अज्ञान (=प्रकाश का आवरण) नष्ट होता है।
योगाङ्गानुष्ठानेन ज्ञानदीप्तिर्भवति = योग के अंगों के अनुष्ठान से ज्ञान बढ़ता है।
मनःप्रग्रहेण आत्मानं संयच्छेत् = मन रूपी लगाम से आत्मा को नियन्त्रित करे।
समर्थाः अपि स्वकर्मभिः वध्यमानाः दृश्यन्ते = समर्थ लोग भी अपने बुरे कर्मों के कारण नष्ट हुए दिखाई देते हैं।
पुण्येन पुण्यलोकं जयति = पुण्य कर्मों से (व्यक्ति) स्वर्ग (=पुण्यलोक) को जीतता है (प्राप्त करता है)।
पापेन पापलोकं गच्छति = पाप कर्मों से नरक को प्राप्त करता है।
गन्धेन गावः पश्यन्ति = गाएं गन्ध से देखती हैं।
वेदैः पश्यन्ति ब्रह्मणाः = ब्रह्मण वेदों से देखते हैं।
चारैः पश्यन्ति राजानः = राजा लोग गुप्तचरों से देखते हैं।
चक्षुर्भ्यामितरे जनाः पश्यन्ति = आंखों से अन्य / सामान्य (=इतर) लोग देखते हैं।
आत्मना आत्मानम् अन्विच्छेत् = अपने आप से अपने आप को जाने।
विद्यया विन्दते वसु = विद्या से धन प्राप्त होता है।
अविद्यया मृत्युं तरति = अविद्या (अपरा विद्या) से मृत्यु (शारीरिक कष्ट, बाधा, विपदाएं) से तर जाता है।
विद्यया अमृतम् अश्नुते = विद्या (परा विद्या) से अमृत (मोक्ष सुख) को प्राप्त कर लेता है।
न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः = मानव को धन से कभी तृप्त नहीं किया जा सकता।
क्षमया किं न साध्यते ? = क्षमा से क्या प्राप्त नहीं होता ?
वाचा वदामि मधुमत् = वाणी से मैं मीठा बोलूं।
स्वेन क्रतुना संवदेत = (व्यक्ति) अपने कर्म से बोले।
क्रतुना ब्रवीतु = कर्म (आचरण) से बोलो।
विमानेन दिवं विगाहते = विमान से आकाश में घूम रहा है।
यत्नेन सिद्ध्यन्ति कामाः = पुरुषार्थ से कामनाएं पूर्ण होती हैं।
धर्मेण एधते नित्यम् = धर्म से (व्यक्ति) नित्य ही वृद्धि को प्राप्त होता है।
हविषा हूताशनो वर्धते = हवी से अग्नि बढ़ती है।
पुरुषार्थेन कार्याणि सिद्ध्यन्ति, न मनोरथैः = मेहनत से कार्यों की सिद्धि होती है न कि ख्याली पुलाव पकाने से।
सप्तभिः अश्वैः सविता संचरति सदा = सूर्य सदा सात घोड़ों से चलता है।
धनलोलुपः जलेन दुग्धं वर्धयति = धन का लोभी पानी से दूध बढ़ा रहा है।
अन्नेन भूतानि जीवन्ति = अन्न से प्राणी जीते हैं।
प्राणैः प्राणिनः प्राणन्ति = प्राणों से प्राणी जीते हैं।
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम = हम कानों से कल्याणकारी बातें सुनें।
भद्रं पश्येम अक्षभिः = आंखों से हम भला देखें।
माम् अद्य मेधया मेधाविनं कुरु = मुझे आज ही मेधा बुद्धि से मेधावी करो।
अस्मान् प्रजया, पशुभिः, ब्रह्मवर्चसेन, अन्नाद्येन समेधय = हमें प्रजा से, पशु (धन-सम्पत्ति) से, ब्रह्मतेज से, अन्न (भोग्य पदार्थों) से तथा अद्य (भोग सामर्थ्य) से अच्छी तरह बढ़ा।
आयुः यज्ञेन कल्पन्ताम् = आयु को यज्ञ से सम्पादित करो।
दीपेन दीपं दीप्येत् = दीपक से दीपक जलाना चाहिए।
यण् सन्धिः
इको यण् अचि। इक् = इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, लृ, के बाद अच् = अ आ… आदि स्वर हो तो इ एवं ई को य्, उ एवं ऊ को व्, ऋ तथा ॠ को र् तथा लृ को ल् हो जाता है।
इ / ई + अच् (इ, ई को छोड़ कर) = इ / ई को य्
उ / ऊ + अच् (उ, ऊ को छोड़ कर) = उ / ऊ को व्
ऋ / ॠ + अच् (ऋ, ॠ को छोड़ कर) = ऋ / ॠ को र
लृ + अच् = लृ को ल्
दधि + अशान = दध्यशान।
तिष्ठतु दध्यशान त्वं शाकेन = दही रहने दे, तू शाक से खा ले।
दधि + ओदनम् = दध्योदनम्।
दध्योदनं रुच्या खादति बालः = बालक दही-चावल रुची से खाता है।
अभि + आवहति = अभ्यावहति।
अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता = सुभाषित वाणी विविध प्रकार के कल्याण / सुखों को प्राप्त कराती है।
हि + एव = ह्येव।
आत्मा ह्येवात्मनो बन्धुः = आत्मा का भाई आत्मा खुद ही है।
नदी + अस्मान् = नद्यस्मान्।
नद्यस्मान् जलेन तृप्यति = नदी हमको जल से तृप्त करती है
---- अखिलेश आचार्य
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